जल+वायु प्रदूषण - हर तीसरा व्यक्ति होने जा रहा हेपेटाइटिस का शिकार






नारियल पानी
लौकी
पुनर्नवा
कपालभाति
घृतकुमारी

मूली





यकृत शोथ यानि लीवर में सूजन को मेडिकल साइन्स ने हेपेटाइटिस का नाम दिया है| हमारे देश में हेपेटाइटिस के ए. बी. सी.और ई. वायरस पाए जाते हैं, यह रोग विषाणुओं के द्वारा हमारे शरीर में फैलता है, विषाणुओं से फैलने के कारण इसे वायरल हेपेटाइटिस कहा जाता है| आज देखा जाये तो जल और वायु अर्थात पूरी तरह जलवायु ही प्रदूषित हो चुकी है| प्रदूषित पानी, खराब भोजन इत्यादि के सेवन से हेपेटाइटिस ए और ई रोग हो जाता है| हेपेटाइटिस ए बच्चों को और ई बड़ों को अपना शिकार बनाता है यह दोनों ही वायरस दूषित जल व खाद्य पदार्थों के माध्यम से हमारे लीवर में तक पहुंचकर लीवर को संक्रमित कर देते है|
लीवर का वजन आमतौर पर एक से डेढ़ किलो तक होता है लीवर पाचन संस्थान का सबसे महत्वपूर्ण अंग है यदि लीवर की स्थिति ठीक है तो चयापचय (मेटाबालिज्म) की क्रिया सही चलती रहती है इसलिए लीवर को स्वस्थ्य रखना आवश्यक है| इस रोग में लीवर को महत्वपूर्ण सेल्स नष्ट हो जाते है| जिसके कारण लीवर लीवर के आकार आदि में परिवर्तन होने लगते है जो प्रत्यक्ष रूप से लीवर को प्रभावित करते है हेपेटाइटिस के लक्षण की चर्चा आदि की जाये तो इनमे त्वचा का रंग तथा आँखें पीली हो जाती है तथा पेशाब का रंग भी गहरा पीला होता है, पेट में दर्द व सूजन महसूस होते हैं, पाचन क्रिया गड़बड़ हो जाती है| मल का रंग खून की तरह लाल या गहरा पीला हो जाता है| सर्वप्रथम  हेपेटाइटिस के उपलब्ध टीके सभी को लगवाने चाहिए, दूषित जल और दूषित खाद्य पदार्थों को त्याग दे लीवर को सुरक्षित रखने के लिए पुनर्नवा (गदहपुर्ना)नामक हर्बल का प्रयोग कर्ण साथ ही यौगिक क्रिया में कपालभाति और अग्निसार क्रिया विशेष लाभकारी है| लीवर को स्वस्थ्य करने के लिए जाऊ, गेहूँ, हरी पत्तेदार सब्जी, लौकी, घृतकुमारी (एलोवेरा), मूली, नारियल पानी, गाय का दूध, छाछ, गन्ने का रस विशेष गुणकारी होता है| मिर्च मसाला, घी तेल से बने सामान इत्यादि हानिकारक है| अर्थात खान पान को व्यवस्थित करें अन्यथा जिस गति से खाद्य पदार्थों के प्रदूषण से यह रोग फ़ैल रहा है उससे यह प्रतीत हो रहा है की हर तीसरा व्यक्ति हेपेटाइटिस का रोगी हो जायेगा|

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