श्वास रोगों के निदान के लिए प्रभावी है पीपल वृक्ष का सानिद्ध्य व भ्रस्त्रिका प्राणायाम - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव




पवित्र पीपल वृक्ष का नाम सभी ने सुना व देखा होगा . पूरे भारत में पाए जाने वाला यह वृक्ष नदियों व झीलों के किनारे सर्वाधिक पाए जाते हैं .वैसे पीपल हिन्दू व बौद्ध धर्मं में विशेष आस्था का प्रतीक है लेकिन अपने औषधीय गुणों के कारण यह सबकी आस्था का प्रतीक है|  हिंदी में इसे पीपल, संस्कृत में अश्वत्थ, चलपत्र, गजासन, बोधिद्रुम, मराठी में पिम्पल, गुजराती में पीपलो  बंगला में असवन  गाछ, आशुद  अंग्रेजी में सेक्रेड फिग या पीपल ट्री, लैटिन (बौटिनिकल)  में इसे फाईकस रिलीजिओसा नाम से जाना जाता है.  प्राकृतिक रूप से पीपल शुद्ध आक्सीजन का सबसे महत्व पूर्ण प्राकृतिक श्रोत है साथ ही शुद्ध वातावरण व पर्यावरण  की दृष्टि  से इसकी उपयोगिता सर्वोपरि है| यह रुक्ष कषाय, कटु विपाक, कफ पित्तशामक, वेदना स्थापन, शोथहर, रक्त पित्तशामक, रक्तशोधक इत्यादि गुणों से भरपूर है. पीपल की पत्तियों का प्रयोग फोड़े, फुंसियो, चोट दर्द, कब्ज, ह्रदय की धड़कन, क्षय रोग इत्यादि के लिए विभिन्न प्रकार से सेवन किया जाना श्रेयष्कर है.उपरोक्त गुणों के साथ -साथ पीपल वृक्ष का सानिध्य व योग के अंतर्गत आने वाला भ्रस्तिका प्राणायाम श्वास  से सम्बंधित रोग जैसे दमा(अस्थमा ),फाइब्रोसिस  इत्यादि के निदान के लिए अति उत्तम है. पीपल की सूखी पत्तियों(जो अपने से गिरी हो ) का पाउडर(चूर्ण ) सममात्रा में शुद्ध शहद के साथ प्रातः व सायं सेवन करने से दमा व फाइब्रोसिस में चमत्कारिक लाभ प्रदान करता है. यह सोने पे सुहागा का काम तब करता है जब व्यक्ति पीपल के शुद्ध सानिद्ध्य अथवा उसके निकट के वातावरण में प्रतिदिन प्रातः व सायंकाल दस-दस मिनट भ्रस्त्रिका प्राणायाम अथवा गहरी श्वास प्रच्छ्वास(Deep Breathing)  की क्रिया करें.

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