योग और हर्बल

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PUDINA
पूरे भारत वर्ष में पाया जाने वाला पौधा पुदीना किसी परिचय का मोहताज नही है | हाँ इतना जरुर है कि विभिन्न भाषाओं में यह भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है | हिंदी में इसे पुदीना और पोदीना, मराठी में पंदिना, बंगला में पुदीना, संस्कृत में पूतिहा, पुदिन:, गुजराती में फुदिनो, अंग्रेजी में स्पियर मिंट तथा लैटिन भाषा में मेंथा सैटाइवा व मेंथा विरिडस इत्यादि नामों से जाना जाता है|
               गुण धर्म व प्रयोग की दृष्टि से देखा जाये तो यह कफ वात शामक, वातानुमोलक, कृमिघ्न, हृदयोत्तेजक, दुर्गन्धनाशक, वेदना स्थापक, कफ नि:सारक है|
अरुचि, अपच, अतिसार, अफारा, श्वास, कास, ज्वर, मूत्ररोग इत्यादि में अति उत्तम माना गया है| वैसे तो पुदीना पूरे वर्ष पाया जाता है किन्तु इसका सर्वाधिक उपयोग गर्मियों में होता है| पुदीने में पाया जाने वाला एपटाइजर गुण उदर सम्बन्धी समस्याओं के लिए अमृत का काम करता है, जिससे पाचन तंत्र संतुलित रहता है| पुदीने के अन्दर पाए जाने वाले सुगंध मात्र से ही "लार ग्रंथि" (स्लाइवा ग्लैंड) सक्रिय हो जाता है जो पाचन क्रिया में अहम् भूमिका निभाता है| पुदीने का नित्य थोडा सा किसी न किसी रूप में सेवन तथा योगासन के अंतर्गत आने वाला वज्रासन पाचन तंत्र को सक्रिय रखने के लिए सर्वोत्तम है| यह याद रहे कि भोजनोपरांत दस मिनट तक वज्रासन में बैठने से पाचन क्रिया तीव्र व संतुलित रहती है| गर्मियों में चलने वाली लू (गर्म हवा) द्वारा शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावो को भी पुदीना मिश्रित "पना" नाकाम करता है| पुदीना का एक सबसे महत्वपूर्ण गुण यह भी है कि यह एसिडिटी के कारण उत्पन्न होने वाले पेट में जलन व सूजन को भी ठीक करता है| पुदीने की पत्ती को पीस कर माथे पर लेप करने से माईग्रेन के दर्द में भी राहत मिलती है| पुदीने के सेवन से श्व्वास की बदबू भी पूरी तरह से नियंत्रित हो जाती है| आमतौर पर उच्च रक्तचाप व निम्न रक्तचाप दोनों की दवा अलग - अलग होती है किन्तु पुदीना रक्तचाप की ऐसी औषधि है जो निम्न और उच्च दोनों ही रक्तचाप के लिए लाभकारी है| यह ध्यान रहे कि उच्चरक्तचाप के मरीज पुदीना सेवन में शक्कर व नमक का प्रयोग न करें| तथा निम्न रक्तचाप के मरीज को पुदीने में कालीमिर्च व सेंधा नमक मिला कर सेवन करना चाहिए|









बीमारियों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो वर्तमान समय में तमाम बीमारियाँ समाज में दिखाई दे रही है, जिसमे सर्वाधिक रोगी मोटापा, सुगर, किडनी सम्बन्धी रोग तथा पथरी के पाए जाते है जिसके लिए कुलथी को सर्वोत्तम हर्बल के रूप में प्रयोग किया जाये तो यह अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाते हुए अचूक सिद्ध होगा | कुलथी आम तौर पर बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाता है | यहाँ यह बताना आवश्यक है की इसे पूरे देश में भिन्न- भिन्न नामों से जाना जाता है, हिंदी में कुलथी, कुलथ, खरथी, गराहट | संस्कृत में कुलत्थिका, कुलत्थ | गुजराती में कुलथी | मराठी में डूलगा, कुलिथ तथा अंग्रेजी में हार्स ग्राम इत्यादि नामों से जाना जाता है | गुण धर्म की दृष्टि से यदि देखा जाये तो यह शोथहर, अश्मरी भेदन, कास, श्वास, वातशामक, पित्त नाशक, रक्त विकार नाशक, मेदा रोग, यकृत व प्लीहा रोग नाशक, मोटापा, शर्करा नाशक, गुर्दारोग व पथरी आदि में यह अति उपयोगी है | किडनी की पथरी का भेदन तथा मोटापा का शमन तीव्र गति से करता है | वैसे तो इसके सेवन की विभिन्न विधियाँ है किन्तु यदि सुविधा की दृष्टि से देखा जाये तो सबसे आसान तरीका यह है की लगभग २५ ग्राम कुलथी २५० ग्राम पानी में भिगाकर रात्रि में रख दे, सुबह शौचादि से निवृत्त होकर उस पानी को पी जाएँ | तत्पश्चात उस बचे हुए कुलथी में पुन: २५० ग्राम पानी डालकर रख दें फिर ५ से ६ घंटे बाद उसे खौलाएं, खौलने पर आधा हो जाने के बाद छान कर उसे पुन: पी जाएँ | इस प्रकार नित्य कुछ दिनों तक सेवन करने के उपरोक्त वर्णित समस्त रोगों में अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है | अन्य चिकित्सा की दृष्टि से यदि देखा जाये तो चने का पानी उबाल कर पीना, पथरचट्टी की पत्ती का सेवन तथा यौगिक क्रिया में कपालभाति व बद्धकोणासन भी अचूक लाभकारी सिद्ध हुआ है | उपरोक्त के अलावा खीरा व खरबूजे का बीज, जौ व मूंग की दाल का पानी भी रोग से पीड़ित व्यक्ति को प्रयोग करना चाहिए | पथरी रोग से ग्रसित व्यक्ति को मद्यपान, मांसाहार, पालक, टमाटर, चावल व बैंगन का त्याग कर देना चाहिए |
थायराइड ग्रंथि मानव शरीर में गले में श्वास नाली के समीप पाई जाने वाली एक ऐसी ग्रंथि है जो थायाराक्सिन नामक हार्मोन का स्राव करती है, वही हार्मोन हमारे शरीर में होने वाली अधिकाधिक जैव रासायनिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है | यह हार्मोन मानव शरीर में होने वाली लगभग सभी क्रियाओं को प्रभावित करता है | थायराक्सिन शरीर के वजन, नींद, उत्साह, भूख, प्यास, ऊर्जा इत्यादि को नियंत्रित व संतुलित करता है | जब थायराइड ग्रन्थि ठीक से कार्य नहीं करती है तो हमारे रक्त में थायराक्सिन नामक हार्मोन का स्तर ज्यादा या कम होने लगता है इसे हम दो श्रेणी में विभक्त करते है जैसे हाइपर थायराइडिज्म और हाइपोथायाराइडिज्म अर्थात हम कह सकते है शरीर में वजन का बढ़ना व घटना दोनों ही स्थिति में हमारे थायराइड ग्रन्थि का अस्वस्थ्य होना ही है इस महत्वपूर्ण हार्मोनल ग्रन्थि को स्वस्थ व संतुलित बनाये रखने के लिए उपचार की दृष्टि से कुछ हर्बल्स (वनौषधि) तथा यौगिक क्रियाओं का सहारा लेना आवश्यक है थायराइड को स्वस्थ रखने के लिए कचनार, पुनर्नवा, मुलेठी व दालचीनी का सेवन श्रेयष्कर है साथ ही साथ नियमित आसन व प्राणायाम जैसे मत्स्यासन, उष्ट्रासन, सर्वांगसन, आनंद्मदिरासन, उर्ध्वापद्मासन, सिंहासन, कपालभाति व उज्जायी प्राणायाम थायराइड ग्रन्थि में होने वाली सारी गतिविधियों को नियंत्रित रखते हुए सामान्य व स्वस्थ बनाए रखता है | इस ग्रन्थि का स्वस्थ रहना इसलिए आवश्यक है क्योकि यह ग्रन्थि शरीर का पेसमेकर अर्थात गतिनिर्धारक है |
आ गया गर्मी का दिन, गर्मी की शुरुआत और तापमान 40 -42° C यह कैसा पर्यावरण असंतुलन | अभी इतना तापमान तो आगे मध्य मई और जून में क्या होगा, लगता तो है मई - जून का तापमान चला जायेगा 50 - 52° C | तब लू चलेगी पराकाष्ठा पर | ऐसी स्थिति में लू से बचने के लिए क्या बेल का रस या आम का पना काम करेगा? ऐसा लगता तो नही | प्रचंड तापमान व लू से बचने के लिए प्रात: काल नित्य 10 मिनट कपाल भाति व ५ से ६ बार अग्निसार क्रिया  (यौगिक क्रिया) अवश्य करनी चाहिए, जो शरीर के तापमान को चौबीस घंटे के लिए मौसम व पर्यावरण के अनुकूल बना देता है, जाहिर है की जब हमारा शरीर आंतरिक व बाह्यरूप से मौसम के अनुकूल बन जायेगा तो हमारे ऊपर सनबर्न व लू का प्रकोप होगा ही नहीं | इसी प्रकार तुलसी की गर्मी हमारे शरीर की आतंरिक गर्मी को प्राकृतिक बाह्य तापमान से सामंजस्य बैठाता है | लू से बचने के लिए अगर नुस्खा अपनाना चाहते है तो याद रखें यदि धूप या लू की स्थिति में घर से निकलना हो तो चार चम्मच तुलसी के रस में एक चुटकी नमक मिलाकर पीने से लू लगने की आशंका नही रहती | लेकिन याद रहे यदि किसी को 'लू' लग गयी हो तो ऐसी स्थितिमे दो चम्मच तुलसी रस में देशी शक्कर मिलाकर दो-दो घंटे के अंतराल पर देते रहने से चौबीस घंटे के अन्दर पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ्य हो जाता है|
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