








गुण धर्म कि दृष्टि से यदि देखा जाये तो मीठा अनार तृप्तिकारक, त्रिदोष नाशक, हल्का किंचित कसैला, शुक्रजनक, मलावरोधक, स्निग्ध, बलवर्धक, स्मरण शक्ति वर्धक होता है | साथ ही दाह, तृषा, ज्वर, मुख दुर्गन्ध, हृदयरोग, मुख रोग व कंठ रोग नाशक है | पित्तशामक, कृमिनाशक पेट रोगों के लिए हितकारी, घबराहट दूर करने वाला अनार स्वर तंत्र, फेफड़े, यकृत, दिल, आमाशय तथा आँतरोगों के लिए विशेष हितकर है | अनार में एंटीवायरल, एंटीआक्सीडेंट, एंटीट्यूमर इत्यादि जैसे तत्त्व पाए जाते हैं | अनार विटामिन का एक अच्छा स्रोत है जिसमें विटामिन ए, सी तथा ई की प्रचुरता होती है | पेट की गड़बड़ी और मधुमेह जैसे रोगों में अनार काफी फायदेमंद है | अनार का छिलका, पेड़ की छाल, पत्तियां और अनार के फूल के सेवन से पेटदर्द में राहत मिलती है | पाचन तंत्र की सभी समस्याओं के निदान में अनार कारगर तो है ही साथ ही अनार की पत्तियों की चाय बनाकर पीने से पाचन सम्बन्धी समस्याओं में आराम मिलता है | दस्त और कालरा जैसी बीमारियों में अनार का जूस पीने से राहत मिलती है | मधुमेह के रोगियों को अनार खाने की सलाह दी जाती है | इससे कारोनरी रोगों का खतरा कम होता है | अनार में आयरन की प्रचुरता होती है, अनार का सेवन व योग के अंतर्गत आने वाले अनुलोम विलोम प्राणायाम तथा कपालभाति की क्रिया रक्त की कमी को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | सूखे अनार के छिलकों का चूर्ण दिन में ३-४ बार एक - एक चम्मच ताजा पानी के साथ लेने से बार बार पेशाब आने की समस्या ठीक हो जाती है, अनार के छिलकों को पानी में उबाल कर उससे कुल्ला करने से श्वास की बदबू समाप्त हो जाती है, अनार के छिलकों का चूर्ण सुबह शाम आधा आधा चम्मच सेवन करने से बवासीर में भी लाभ मिलता है | खांसी में अनार के छिलके को मुँह में रखकर धीरे धीरे ३-४ बार चूसते रहने से लाभ मिलता है |


दुनिया भर में खाए व पाए जाने वाला फल "आम" जो फलों के राजा के रूप में जाना जाता है, हाँ अलग-अलग भाषाओँ में इसे अलग-अलग नामों से उच्चारित किया जता है, हिंदी में आम, आम्र, मराठी में आंबा, संस्कृत में कामबल्लभ, आम्र, गुजराती में अम्बो, बंगला में आम्र, अंग्रेजी में मैंगो तथा लैटिन में मैग्नीफेरा इंडिका आदि नामों से जाना जता है | अगर हम अध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो प्रत्येक पूजन व कलश स्थापना में आम की पत्ती का विशेष महत्व होता है, प्राकृतिक रूप से सूख कर गिरे आम की लकड़ी व पत्तियां हवन- यज्ञ कार्यों के लिए प्रयोग किये जाने पर उद्देश्य की पूर्ति में अतिउपयोगी सिद्ध होता है | औषधीय गुण व धर्म से कच्चा आम कषाय, अम्ल,वात एवं पित्त वर्धक और पका आम मधुर, स्निग्ध, बल तथा सुखदायक वात नाशक , शीतल, अग्नि, काफ और वीर्यवर्धक होता है |
![]() |
उज्जायी प्राणायाम |


आम के बौर शीतल रुचिकारक, अतिसार, वातकारक, प्रदर और रुधिर रोग नाशक है | आम का रस दूध के साथ लेना शक्ति व वीर्यवर्धक होता है | पके आम में विटामिन ए तथा सी प्रचुर मात्रा में पाया जता है | आम की गुठली का प्रयोग मुख रोग, कफ, वात तथा मधुमेह हेतु गुणकारी है | आम की गुठली का प्रयोग बाल झड़ना व रुसी में भी काफी लाभकारी है | आम के पत्तों को शहद में मिलाकर सेवन करने से हिचकी रोग शांत हो जाता है | छाया में सुखाये गए १० ग्राम आम के पत्ते का १/२ किग्रा जल में खौलाए हुए काढ़ा का सेवन मधुमेह में अपना चमत्कारी प्रभाव दीखता है | देशी आम का २५० ग्राम रस, ५० एम. एल. गोदुग्ध और ५ ग्राम अदरक रस व १० ग्राम मिश्री मिलाकर लस्सी कि तरह फेंट ले और २-३ सप्ताह तक सेवन करना आँखों और यकृत के लिए काफी उपयोगी है | शरीर के समस्त अवयवों को शक्ति प्रदान करने के लिए आम के १० पत्ते को १ ली. पानी में डालकर खौलाएं जिसमे कम से कम १½ ग्राम इलायची का पाउडर पडा हो, ½ हो जाने पर स्वादानुसार दूध व शक्कर मिला कर चाय की तरह सेवन करना चाहिए | आम की गुठली को जल के साथ पत्थर पर पीस कर लगाने से भंवरा, बर्रे,मधुमक्खी, बिच्छू, या विषैले कीड़े- मकोड़े के दंश से उत्पन्न वेदना, विष,जलन तथा दाह को शांत करता है | आम तथा योग के अंतर्गत आने वाला उज्जायी प्राणायाम समस्त प्रकार के कंठ रोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है | आम के कच्चे फल के अत्यधिक सेवन से मन्दाग्नि, विषम ज्वर, रक्तदोष, मलबद्धता जैसे रोग उत्पन्न होते है | आम खाने के तुरंत बाद जल नही पीना चाहिए | इतने सारे गुणों के कारण ही तो आम फलों का राजा कहलाता है |

आज इस अवसर पर देश पर मिटने वाले शहीदों की याद में कुछ पंक्तियाँ अपने उद्बोधन के रूप में रखना चाहता हूँ | यह तो सभी जानते हैं की १५ अगस्त भारत का स्वतन्त्रता दिवस है, आज़ादी हमें स्वत: नहीं मिल गई अपितु एक लम्बे संघर्ष और हजारों लाखों लोगों के बलिदान के पश्चात ही भारत आजाद हो पाया था |
सन अट्ठारह सौ सत्तावन की प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के यज्ञ का आरम्भ किया महर्षि दयानंद सरस्वती ने और इस यज्ञ को पहली आहुति दी मंगल पाण्डेय ने | देखते ही देखते यह यज्ञ चारों ओर फैल गया | झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, नाना राव जैसे योद्धाओं ने इस स्वतन्त्रता के यज्ञ में अपने रक्त की आहुति दी | दूसरे चरण में सरफरोशी की तमन्ना लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु आदि देश के लिए शहीद हो गये | तिलक ने स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है का उदघोष किया, सुभाष चन्द्र बोस ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा का मंत्र दिया | अहिंसा और असहयोग का अस्त्र लेकर महात्मा गाँधी और गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ने को तत्पर लौह पुरुष सरदार पटेल ने अपने प्रयास तेज कर दिए | नब्बे वर्षों की लम्बी संघर्ष यात्रा के बाद पंद्रह अगस्त सन उन्नीस सौ सैंतालिस को भारत को स्वतन्त्रता देवी का आशीर्वाद मिल सका और हमारा देश गुलामी की बेड़ियों से मुक्त होकर स्वतंत्र हुआ | और इस आज़ादी को सुरक्षित रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है | इस हेतु हम इस नारे के साथ इसकी रक्षा का संकल्प लेते हैं :-
प्यारा भारत , देश हमारा |
इसकी रक्षा कौन करेगा???
हम करेंगे, हम करेंगे, हम करेंगे...
इसकी रक्षा कौन करेगा???
हम करेंगे, हम करेंगे, हम करेंगे...




पहचान की दृष्टि से सुदर्शन का पौधा छोटा व लम्बी पत्ती वाला होता है इसमें सफ़ेद फूल निकलता है जो सुगन्धित होने के साथ ही सुंदर होता है , इसका आकर्षण देखने लायक होता है |
![]() | |
PUDINA |
गुण धर्म व प्रयोग की दृष्टि से देखा जाये तो यह कफ वात शामक, वातानुमोलक, कृमिघ्न, हृदयोत्तेजक, दुर्गन्धनाशक, वेदना स्थापक, कफ नि:सारक है|
अरुचि, अपच, अतिसार, अफारा, श्वास, कास, ज्वर, मूत्ररोग इत्यादि में अति उत्तम माना गया है| वैसे तो पुदीना पूरे वर्ष पाया जाता है किन्तु इसका सर्वाधिक उपयोग गर्मियों में होता है| पुदीने में पाया जाने वाला एपटाइजर गुण उदर सम्बन्धी समस्याओं के लिए अमृत का काम करता है, जिससे पाचन तंत्र संतुलित रहता है| पुदीने के अन्दर पाए जाने वाले सुगंध मात्र से ही "लार ग्रंथि" (स्लाइवा ग्लैंड) सक्रिय हो जाता है जो पाचन क्रिया में अहम् भूमिका निभाता है| पुदीने का नित्य थोडा सा किसी न किसी रूप में सेवन तथा योगासन के अंतर्गत आने वाला वज्रासन पाचन तंत्र को सक्रिय रखने के लिए सर्वोत्तम है| यह याद रहे कि भोजनोपरांत दस मिनट तक वज्रासन में बैठने से पाचन क्रिया तीव्र व संतुलित रहती है| गर्मियों में चलने वाली लू (गर्म हवा) द्वारा शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावो को भी पुदीना मिश्रित "पना" नाकाम करता है| पुदीना का एक सबसे महत्वपूर्ण गुण यह भी है कि यह एसिडिटी के कारण उत्पन्न होने वाले पेट में जलन व सूजन को भी ठीक करता है| पुदीने की पत्ती को पीस कर माथे पर लेप करने से माईग्रेन के दर्द में भी राहत मिलती है| पुदीने के सेवन से श्व्वास की बदबू भी पूरी तरह से नियंत्रित हो जाती है| आमतौर पर उच्च रक्तचाप व निम्न रक्तचाप दोनों की दवा अलग - अलग होती है किन्तु पुदीना रक्तचाप की ऐसी औषधि है जो निम्न और उच्च दोनों ही रक्तचाप के लिए लाभकारी है| यह ध्यान रहे कि उच्चरक्तचाप के मरीज पुदीना सेवन में शक्कर व नमक का प्रयोग न करें| तथा निम्न रक्तचाप के मरीज को पुदीने में कालीमिर्च व सेंधा नमक मिला कर सेवन करना चाहिए|


बीमारियों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो वर्तमान समय में तमाम बीमारियाँ समाज में दिखाई दे रही है, जिसमे सर्वाधिक रोगी मोटापा, सुगर, किडनी सम्बन्धी रोग तथा पथरी के पाए जाते है जिसके लिए कुलथी को सर्वोत्तम हर्बल के रूप में प्रयोग किया जाये तो यह अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाते हुए अचूक सिद्ध होगा | कुलथी आम तौर पर बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाता है | यहाँ यह बताना आवश्यक है की इसे पूरे देश में भिन्न- भिन्न नामों से जाना जाता है, हिंदी में कुलथी, कुलथ, खरथी, गराहट | संस्कृत में कुलत्थिका, कुलत्थ | गुजराती में कुलथी | मराठी में डूलगा, कुलिथ तथा अंग्रेजी में हार्स ग्राम इत्यादि नामों से जाना जाता है | गुण धर्म की दृष्टि से यदि देखा जाये तो यह शोथहर, अश्मरी भेदन, कास, श्वास, वातशामक, पित्त नाशक, रक्त विकार नाशक, मेदा रोग, यकृत व प्लीहा रोग नाशक, मोटापा, शर्करा नाशक, गुर्दारोग व पथरी आदि में यह अति उपयोगी है | किडनी की पथरी का भेदन तथा मोटापा का शमन तीव्र गति से करता है | वैसे तो इसके सेवन की विभिन्न विधियाँ है किन्तु यदि सुविधा की दृष्टि से देखा जाये तो सबसे आसान तरीका यह है की लगभग २५ ग्राम कुलथी २५० ग्राम पानी में भिगाकर रात्रि में रख दे, सुबह शौचादि से निवृत्त होकर उस पानी को पी जाएँ | तत्पश्चात उस बचे हुए कुलथी में पुन: २५० ग्राम पानी डालकर रख दें फिर ५ से ६ घंटे बाद उसे खौलाएं, खौलने पर आधा हो जाने के बाद छान कर उसे पुन: पी जाएँ | इस प्रकार नित्य कुछ दिनों तक सेवन करने के उपरोक्त वर्णित समस्त रोगों में अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है | अन्य चिकित्सा की दृष्टि से यदि देखा जाये तो चने का पानी उबाल कर पीना, पथरचट्टी की पत्ती का सेवन तथा यौगिक क्रिया में कपालभाति व बद्धकोणासन भी अचूक लाभकारी सिद्ध हुआ है | उपरोक्त के अलावा खीरा व खरबूजे का बीज, जौ व मूंग की दाल का पानी भी रोग से पीड़ित व्यक्ति को प्रयोग करना चाहिए | पथरी रोग से ग्रसित व्यक्ति को मद्यपान, मांसाहार, पालक, टमाटर, चावल व बैंगन का त्याग कर देना चाहिए |



ABOUT ME


I could look back at my life and get a good story out of it. It's a picture of somebody trying to figure things out.
POPULAR POSTS
Contact Form
All Articles are Under Strict Copyright | Yog aur Herbal | 2018. Powered by Blogger.
एक नजर इधर भी
योग व आयुर्वेद से जुडी किसी भी जिज्ञासा के लिए मुझसे संपर्क करें मेरे व्हाट्सऐप नंबर पर : +91- 7499114309
ऑन लाईन से सम्बंधित मैसेज vaidikyog@gmail.com पर भेंजे
योग व हर्बल से सम्बंधित किसी भी प्रकार की जिज्ञासा का हार्दिक स्वागत है.
ऑन लाईन से सम्बंधित मैसेज vaidikyog@gmail.com पर भेंजे
योग व हर्बल से सम्बंधित किसी भी प्रकार की जिज्ञासा का हार्दिक स्वागत है.