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आंवला
जलनेति

शीर्षासन
सर्वांगासन
 औषधीय गुणों से भरपूर तथा विटामिन सी का प्रचूरतम भंडार आंवला जिसका नाम सभी ने सुना होगा | विभिन्न प्रान्त की भाषा के अनुरूप यह विभिन्न नामों से जाना जाता है | हिंदी में आमला ,आंवला  | संस्कृत में आमलक, धात्री,मराठी में आंवली, आंवल काठी| बंगला में आमलनी, अम्बोलारा| गुजराती में आंवला तथा अंग्रेजी में इंडियन गुज्वेरी आदि नामों से जाना जाता है| गुण धर्म व स्वाद की दृष्टि से आंवला कसैला, अम्ल-कटु, मधुर, शीतल हल्का, त्रिदोष नाशक, रुक्ष, दस्तावर केशों के लिए हितकारी मिचलाहट, अफारा, थकावट, रक्तविकार आदि व्याधियों के लिए चमत्कारी रूप से गुणकारी है| आंवले में नारंगी के रस से २० गुना अधिक विटामिन सी पाया जाता है| आंवले में गेलिक एसिड, टैनिक एसिड, शर्करा, एल्ब्यूमिन, सेल्युलोज तथा कैल्सीयम पाया जाता है| आंवले के फल का चूर्ण यकृत रोग, सिर दर्द, कब्ज, बवासीर व बदहजमी में प्रयोग करना अति उत्तम है| भयंकर अतिसार में आंवले और अदरक की लुगदी मिलाकर नाभि में रख देने पर अत्यधिक लाभ मिलता है| आंवले के बीज को रात भर जल में भीगा कर रखें अगले दिन पीसकर २५० ग्राम गौ दूध के साथ लेने पर पित्त की अधिकता में लाभ मिलता है| सूखे आंवले ३० ग्राम, बहेड़ा १० ग्राम, आम की गुठली की गिरी ५० ग्राम और २० ग्राम मेथी चूर्ण रात भर लोहे की कढ़ाही में भीगों कर रखें अगले दिन बालों में लेप करें निश्चित ही असमय पके बाल काले हो जाते है| आंवला का चूर्ण का नित्य सेवन व शीर्षासन व सर्वांगासन करने पर गंजापन अवश्य दूर होता है| आंवला नेत्र ज्योति वर्धक व बुद्धिवर्धक भी होता है| आंवला चूर्ण खाने व यौगिक क्रिया जलनेति करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है | आवंला , रीठा व शिकाकाई तीनों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम और घने होते हैं | हिचकी तथा उल्टी में आंवले की चटनी में मिश्री मिलाकर (खाना हितकारी होता है | ) पके हुए आंवलो  का रस निकालकर उसको खरल में डालकर घोटना चाहिए घोटते गाढ़ा कर लें इसके नित्य सेवन से पित्त का शमन होता है | इसकी २-५ ग्राम की मात्रा नित्य सेवन करने से घबराहट , बेचैनी , प्यास और पित्त का ज्वर दूर होता है |





नारियल पानी
लौकी
पुनर्नवा
कपालभाति
घृतकुमारी

मूली





यकृत शोथ यानि लीवर में सूजन को मेडिकल साइन्स ने हेपेटाइटिस का नाम दिया है| हमारे देश में हेपेटाइटिस के ए. बी. सी.और ई. वायरस पाए जाते हैं, यह रोग विषाणुओं के द्वारा हमारे शरीर में फैलता है, विषाणुओं से फैलने के कारण इसे वायरल हेपेटाइटिस कहा जाता है| आज देखा जाये तो जल और वायु अर्थात पूरी तरह जलवायु ही प्रदूषित हो चुकी है| प्रदूषित पानी, खराब भोजन इत्यादि के सेवन से हेपेटाइटिस ए और ई रोग हो जाता है| हेपेटाइटिस ए बच्चों को और ई बड़ों को अपना शिकार बनाता है यह दोनों ही वायरस दूषित जल व खाद्य पदार्थों के माध्यम से हमारे लीवर में तक पहुंचकर लीवर को संक्रमित कर देते है|
लीवर का वजन आमतौर पर एक से डेढ़ किलो तक होता है लीवर पाचन संस्थान का सबसे महत्वपूर्ण अंग है यदि लीवर की स्थिति ठीक है तो चयापचय (मेटाबालिज्म) की क्रिया सही चलती रहती है इसलिए लीवर को स्वस्थ्य रखना आवश्यक है| इस रोग में लीवर को महत्वपूर्ण सेल्स नष्ट हो जाते है| जिसके कारण लीवर लीवर के आकार आदि में परिवर्तन होने लगते है जो प्रत्यक्ष रूप से लीवर को प्रभावित करते है हेपेटाइटिस के लक्षण की चर्चा आदि की जाये तो इनमे त्वचा का रंग तथा आँखें पीली हो जाती है तथा पेशाब का रंग भी गहरा पीला होता है, पेट में दर्द व सूजन महसूस होते हैं, पाचन क्रिया गड़बड़ हो जाती है| मल का रंग खून की तरह लाल या गहरा पीला हो जाता है| सर्वप्रथम  हेपेटाइटिस के उपलब्ध टीके सभी को लगवाने चाहिए, दूषित जल और दूषित खाद्य पदार्थों को त्याग दे लीवर को सुरक्षित रखने के लिए पुनर्नवा (गदहपुर्ना)नामक हर्बल का प्रयोग कर्ण साथ ही यौगिक क्रिया में कपालभाति और अग्निसार क्रिया विशेष लाभकारी है| लीवर को स्वस्थ्य करने के लिए जाऊ, गेहूँ, हरी पत्तेदार सब्जी, लौकी, घृतकुमारी (एलोवेरा), मूली, नारियल पानी, गाय का दूध, छाछ, गन्ने का रस विशेष गुणकारी होता है| मिर्च मसाला, घी तेल से बने सामान इत्यादि हानिकारक है| अर्थात खान पान को व्यवस्थित करें अन्यथा जिस गति से खाद्य पदार्थों के प्रदूषण से यह रोग फ़ैल रहा है उससे यह प्रतीत हो रहा है की हर तीसरा व्यक्ति हेपेटाइटिस का रोगी हो जायेगा|

कपाल भाति
पाचनतंत्र
दूर्वा
दूर्वा
शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो दूब को नहीं जानता होगा| हाँ यह अलग बात है कि हर क्षेत्रों में तथा भाषाओँ में यह अलग अलग नामों से जाना जाता है| हिंदी में इसे दूब, दुबडा| संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली| मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा| गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो| अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन| बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामो से जाना जाता है| इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है| इसके औषधीय गुणों के अनुसार दूब त्रिदोष को हरने वाली एक ऐसी औषधि है जो वात कफ पित्त के समस्त विकारों को नष्ट करते हुए वात-कफ और पित्त को सम करती है| दूब सेवन के साथ यदि कपाल भाति की क्रिया का नियमित यौगिक अभ्यास किया जाये तो शरीर के भीतर के त्रिदोष को नियंत्रित कर देता है, यह दाह शामक,रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदर, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोगों, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है| यह कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक, उदर रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| श्वेत दूर्वा विशेषतः वमन, कफ, पित्त, दाह, आमातिसार, रक्त पित्त, एवं कास आदि विकारों में विशेष रूप से प्रयोजनीय है| सेवन की दृष्टि से दूब की जड़ का 2 चम्मच पेस्ट एक कप पानी में मिलाकर पीना चाहिए|
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