योग और हर्बल

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 सम्पूर्ण भारत वर्ष में पाए जाने वाला गूलर अपनी उपयोगिता के कारण हमारे देश में एक पवित्र वृक्ष के रूप में जाना जाता है. यह भिन्न भिन्न प्रदेशों में भाषा के अनुरूप भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है, महाराष्ट्र में तो ऐसा माना जाता है की गूलर के वृक्ष में भगवान् दत्तात्रेय का वास होता है. वैसे तो सम्पूर्ण भारत में इसे गुलर के नाम से जाना जाता है किन्तु संकृत में इसे उदुम्बर जन्नूफल, मराठी में उम्बर, गुजराती में उम्बरो,बंगला में यज्ञ डूम्बुरा, अंग्रेजी में क्लस्टर फिग आदि नामों से जाना जाता है. गुण धर्म की दृष्टि से यदि देखा जाए तो यह कफ पित्त शामक, दाह प्रशमन, अस्थि संघानक तथा सोत, रक्त पित्त, प्रदर,प्रमेह,अर्श, गर्भाशय विकार आदि नाशक है. चिकित्सा की दृष्टि से गूलर की छाल, पत्ते, जड़, कच्चाफल व पक्का फल सभी उपयोगी है| गूलर का कच्चा फल कसैला व उदार के दाह का नाशक होता है, पके फल के सेवन और कप्पल भाति की क्रिया करने से कब्ज मिटता है| पकाफल मीठा, शीतल, रुचिकारक, पित्तशामक, श्रमकष्टहर, द्राह- तृष्णाशामक, पौष्टिक व कब्ज नाशक होता है| कुछ दिनों तक लगातार इसकी जड़ का अनुपातिक काढ़ा पीने से व योग के अंतर्गत आने वाले कपाल भाति की प्रक्रिया से मधुमेह पूरी तरह से नियंत्रित हो जाता है|
खुनी बवासीर में इसके पत्तों का रस लाभकारी होता है| गूलर का दूध शरीर से बाहर निकालने वाले विभिन्न स्रावों को नियंत्रित करता है| हाथ पैर की चमड़ी फटने से होने होने वाली पीड़ा कम करने के लिए गूलर के दूध का लेप करना लाभकारी सिद्ध हुआ है| मुँह में छाले, मसूढ़ों से खून आना आदि विकारों में इसकी छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ली करने से विशेष लाभ होता है| ग्रीष्म ऋतु की गर्मी या अन्य जलन पैदा करने वाले विकारों एवं चेचक आदि में पके फल को पीसकर उसमे शक्कर मिलाकर उसका शर्बत बनाकर पीने से राहत मिलती है| इस प्रकार इसकी असंख्य उपयोगिताओं के कारण ही तो इसे पवित्र वृक्षों की श्रेणी में रखा गया है|

Yogacharya Vijay ke sath videshi shishya
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है जिसके लिए योग के विभिन्न आसन, प्राणायाम, ध्यान व षट्कर्म आदि अति महत्व पूर्ण घटक हैं| यह कहा जा सकता है की शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए आसन प्राणायाम व षट्कर्म का अभ्यास अपेक्षित है| योग के द्वारा न केवल शरीर सौष्ठव, स्फूर्ति आदि की प्राप्ति होती है बल्कि मन की एकाग्रता व स्वांस की क्रिया नियंत्रित होती है| शरीर में विद्यमान वाट काफ व पित्त का संतुलन बना रहता है, ध्यान लगता है, रोगों के निवारण में सहायता मिलती है, शरीर की मांसपेसियों में प्रसार व संकुचन की प्रक्रिया तीव्र होती है, शरीर में रक्त संचार भी व्यवस्थित होता है|
पुष्प चिकित्सा भी योग की ही भाँति स्वास्थ व चिकित्सा की दृष्टि से अचूक चिकित्सा पद्धति है, फूलों को शरीर पर धारण करने से शरीर की शोभा, काँटी, सौंदर्य, व श्री की वृद्धि तो होती है साथ ही फूलों की सुगन्धि रोग नाशक भी है, फूलों के सभी अवयव उपयोगी होते हैं, इनके यथाविधि उपयोग से अनेक रोगों का शमन किया जा सकता है| यहाँ कुछ पुष्पों के औषधि गुण दिए जा रहे हैं जो निम्नवत हैं-

गुलाब
- पेट और आंतो की गर्मी शांत करके ह्रदय को प्रसन्न करता है तथा मस्तिष्क को ठंडा करता है|
कमल- कमल की पंखुड़ियों को पीस कर उबटन में मिलाकर चहरे पर मलने से चहरे की सुन्दरता बढ़ती है| इनके फूलों से तैयार गुलकंद का उयोग कब्ज निवारण हेतु किया जाता है|
सूरजमुखी- इसका तेल ह्रदय रोगों में कोलेस्ट्रोल को कम करता है, इसमें विटामिन ए तथा डी होता है|
गेंदा- इसके गंध से मक्षर दूर भागते हैं, लीवर के रोगों, लीवर में सूजन, पथरी एवं चर्म रोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है|
चमेली- इसके पत्ते चबाने से मुह के छाले तुरंत दूर हो जाते हैं, पायरिया, दन्त शूल, फोड़े फुंसियों, चर्म रोगों व नेत्र रोगों में चमेली का तेल अत्यंत गुणकारी है|
केशर- यह शक्तिवर्धक, वमन को भी रोकने वाला तथा वात, कफ तथा पित्त नाशक है, दूध या पान के साथ इसके सेवन से यह ओज, बल, शक्ति व स्फूर्ति प्रदान करता है|
लौंग
- दाढ़ या दन्त शूल में मुह में दाल कर चूसने से लाभ होता है, अमाशय और अन्तो में रहने वाले उन सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करती है जिनके कारण पेट फूलता है|
गुड़हल- इसके फूलों को पीसकर बालों में लेप करने से बालों का गंजापन मिटता है, यह शीतवर्धक,बाजीकारक तथा रक्तशोधक है,
कचनार- इसकी कली बार बार मलत्याग की प्रवृत्ति को रोकती है| कचनार के फूल की पुलटिस बनाकर बनाकर घाव या फोड़े पर लगाने से लाभ मिलाता है|
नीम
-  यह संक्रामक रोगों से रक्षा करता है| नीम के फूलों को पीस कर पानी में घोलकर छानले और शहद मिलाकर पीने से वजन कम होता है|
हरश्रृंगार- इसका लेप चहरे की काँटी को बढाता है| यह गठिया रोग का नाशक है|
केवड़ा- केवड़ा फूल का इत्र सिर दर्द व गठिया में उपयोगी है, इसके फूल का तेल उत्तेजक व श्वांस विकार में लाभकारी होता है|
          इसी प्रकार अनेक अन्य फूल भी हैं जिनमे औषधीय गुण विद्यमान है|
(नोट:- निकट भविष्य में अन्य भी बहुत से फूलों के औषधीय गुणों के बारे में लेख प्रकाशित किये जायेंगे|)
चिचड़ी
चिचड़ी एक ऐसा चमत्कारी पौधा है जो हर जगह आसानी से पाया जाता है| चिचड़ी को आयुर्वेद में अपामार्ग के नाम से जाना जाता है| पहचान की दृष्टि से देखा जाए तो इसके पत्ते कुछ गोल व खुरदुरे होते है, इसके तने व टहनियाँ गाँठ युक्त
होते है साथ ही इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसके फूल छोटे छोटे कांटेदार होते है जिसके निकट जाने से यह कपड़ो पर चिपक जाता है| यह जंगली वनस्पति कई रोगों जैसे बवासीर, फोड़े फुंसी, पायरिया दमा,मधुमेह, विषैले जंतु दंश, पेट दर्द इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| भिन्न भिन्न रोगों में इसे भिन्न भिन्न प्रकार से लिया जाता है जैसे- किसी भी प्रकार के फोड़े फुंसी पर चिचड़ी की पत्ती पीसकर उसमें सरसों का तेल मिलाकर गर्म करके लगाने से फोड़े फुंसी या तो बैठ जाते है या पक कर फूट जाते हैं| चिचड़ी (अपामार्ग) की जड़ की दातुन दांतों के हर प्रकार के रोगों में चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| बवासीर रोग में चिचड़ी के सात आठ पत्ते, उतने ही काली मिर्च के दाने को पीसकर दिन में एकबार एक कप पानी में डालकर पीने से बवासीर का खून  निकलना  बंद हो जाता है| सुगर रोग में इसके पत्ते का रस नियमित सेवन करना श्रेयष्कर होता है| विषैले जंतुओं के काटने पर चिचड़ी के पत्ते व जड़ का रस पिलाने व काटे हुए स्थान पर लगाने से विष का प्रभाव समाप्त होने लगता है| इसी प्रकार चिचड़ी के विभिन्न प्रकार से प्रयोग से पेट का दर्द, दमा, अफारा, खांसी इत्यादि में भी अपना लाभकारी प्रभाव दिखाते हैं| वनौषधियों के साथ-साथ अगर आसन प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं का भी प्रयोग किया जाये तो लाभकारी प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है|
शीतली
शीतकारी प्राणायाम
वायु मंडल में प्रदूषणकारी गैसों की वृद्धि, व्यापक स्तर पर हो रहे औद्योगीकरण के कारण जल प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है, इस जल प्रदूषण को रोकने के उपाय अवश्य करने चाहिए, क्योंकि जल में अद्भुत औषधीय शक्ति होती है जो कई रोगों से बचाती है और उपचार भी करती है. चिकित्सा की तमाम पद्धतियों में जल चिकित्सा भी जग जाहिर है बहुत से रोगों में जल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है. किसी रोग के उपचार हेतु ठन्डे पानी तो कई रोगों का उपचार गरम जल से किया जाता है. उदहारण के तौर पर जोड़ों का दर्द, घुटने का दर्द, स्पंडलाइटीस, कमर का दर्द, हड्डियों में जकड़न आदि में गरम पानी(सहने योग्य) से सेंकाई की जाती है. इसी तरह मोंच आ जाने या चोट लग जाने वाले स्थान पर ठन्डे पानी की पट्टी लगाने से न तो सुजन आयेगी और न ही दर्द बढ़ेगा. अधिक मात्रा में रक्त स्राव होने पर ठंडा पानी घाव पर डालने से रक्त बंद बहना बंद हो जाता है. तीव्र बुखार आने पर ठन्डे पानी की पट्टी माथे पर रखने व पुरे बदन को पानी से पोंछने पर भी लाभ होता है. शास्त्रों में उल्लिखित है की 'अजीर्नो भेषजं वारि बल प्रदम' यानी कि अजीर्ण अर्थात अपच होने पानी दवा का काम करता है और भोजन के बाद पानी से शरीर को बल कि प्राप्ति होती है. जिसे नींद न आती हो ऐसे व्यक्ति को शयन से पूर्व सहने योग्य गर्म पानी से भरी बाल्टी में पैरों को घुटने तक दाल कर पंद्रह से बीस मिनट तक रखना चाहिए इसके बाद पैरों के सूखे तौलिये से पोंछकर सोने से नींद अच्छी आती है. अकस्मात् आग से जल जाने या झुलस जाने पर जले हुए अंग को कुछ देर पानी में डालकर रखने से फफोले नहीं पड़ते और जलन दूर हो जाती है. ग्रीष्म ऋतू का आगमन हो रहा है, उलटी दस्त, बदहजमी, डायरिया का प्रकोप बढ़ जाता  हैशरीर में पानी कि कमी भी हो जाती है, शरीर में अत्यधिक पानी कि कमी हो जाने के कारण मृत्यु कि संभावना  रहती है ऐसी स्थिति में मरीज को बचाने में दो विकल्प विशेष लाभकारी होते है, या तो सेलाइन चढ़ाकर या चीनी नमक का घोल (उचित अनुपात में ) से युक्त पानी पिलाना. ये तो रहा जल का प्रत्यक्ष प्रयोग किन्तु यहाँ यह भी बताना समीचीन होगा कि योग कि दृष्टि से देखा जाये तो आवश्यकतानुसार व मौसम के अनुसार शीतली व शीतकारी प्राणायाम भी शरीर के होने वाले पानी कि कमी को दूर करता है.
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