योग और हर्बल

  • Home
    • Version 1
  • Yoga
  • Ayurveda
  • Ayurvedic Product
    • Lifestyle
    • Sports Group
      • Category 1
      • Category 2
      • Category 3
      • Category 4
      • Category 5
    • Sub Menu 3
    • Sub Menu 4
  • Contact Us

आंवला
जलनेति

शीर्षासन
सर्वांगासन
 औषधीय गुणों से भरपूर तथा विटामिन सी का प्रचूरतम भंडार आंवला जिसका नाम सभी ने सुना होगा | विभिन्न प्रान्त की भाषा के अनुरूप यह विभिन्न नामों से जाना जाता है | हिंदी में आमला ,आंवला  | संस्कृत में आमलक, धात्री,मराठी में आंवली, आंवल काठी| बंगला में आमलनी, अम्बोलारा| गुजराती में आंवला तथा अंग्रेजी में इंडियन गुज्वेरी आदि नामों से जाना जाता है| गुण धर्म व स्वाद की दृष्टि से आंवला कसैला, अम्ल-कटु, मधुर, शीतल हल्का, त्रिदोष नाशक, रुक्ष, दस्तावर केशों के लिए हितकारी मिचलाहट, अफारा, थकावट, रक्तविकार आदि व्याधियों के लिए चमत्कारी रूप से गुणकारी है| आंवले में नारंगी के रस से २० गुना अधिक विटामिन सी पाया जाता है| आंवले में गेलिक एसिड, टैनिक एसिड, शर्करा, एल्ब्यूमिन, सेल्युलोज तथा कैल्सीयम पाया जाता है| आंवले के फल का चूर्ण यकृत रोग, सिर दर्द, कब्ज, बवासीर व बदहजमी में प्रयोग करना अति उत्तम है| भयंकर अतिसार में आंवले और अदरक की लुगदी मिलाकर नाभि में रख देने पर अत्यधिक लाभ मिलता है| आंवले के बीज को रात भर जल में भीगा कर रखें अगले दिन पीसकर २५० ग्राम गौ दूध के साथ लेने पर पित्त की अधिकता में लाभ मिलता है| सूखे आंवले ३० ग्राम, बहेड़ा १० ग्राम, आम की गुठली की गिरी ५० ग्राम और २० ग्राम मेथी चूर्ण रात भर लोहे की कढ़ाही में भीगों कर रखें अगले दिन बालों में लेप करें निश्चित ही असमय पके बाल काले हो जाते है| आंवला का चूर्ण का नित्य सेवन व शीर्षासन व सर्वांगासन करने पर गंजापन अवश्य दूर होता है| आंवला नेत्र ज्योति वर्धक व बुद्धिवर्धक भी होता है| आंवला चूर्ण खाने व यौगिक क्रिया जलनेति करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है | आवंला , रीठा व शिकाकाई तीनों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम और घने होते हैं | हिचकी तथा उल्टी में आंवले की चटनी में मिश्री मिलाकर (खाना हितकारी होता है | ) पके हुए आंवलो  का रस निकालकर उसको खरल में डालकर घोटना चाहिए घोटते गाढ़ा कर लें इसके नित्य सेवन से पित्त का शमन होता है | इसकी २-५ ग्राम की मात्रा नित्य सेवन करने से घबराहट , बेचैनी , प्यास और पित्त का ज्वर दूर होता है |





नारियल पानी
लौकी
पुनर्नवा
कपालभाति
घृतकुमारी

मूली





यकृत शोथ यानि लीवर में सूजन को मेडिकल साइन्स ने हेपेटाइटिस का नाम दिया है| हमारे देश में हेपेटाइटिस के ए. बी. सी.और ई. वायरस पाए जाते हैं, यह रोग विषाणुओं के द्वारा हमारे शरीर में फैलता है, विषाणुओं से फैलने के कारण इसे वायरल हेपेटाइटिस कहा जाता है| आज देखा जाये तो जल और वायु अर्थात पूरी तरह जलवायु ही प्रदूषित हो चुकी है| प्रदूषित पानी, खराब भोजन इत्यादि के सेवन से हेपेटाइटिस ए और ई रोग हो जाता है| हेपेटाइटिस ए बच्चों को और ई बड़ों को अपना शिकार बनाता है यह दोनों ही वायरस दूषित जल व खाद्य पदार्थों के माध्यम से हमारे लीवर में तक पहुंचकर लीवर को संक्रमित कर देते है|
लीवर का वजन आमतौर पर एक से डेढ़ किलो तक होता है लीवर पाचन संस्थान का सबसे महत्वपूर्ण अंग है यदि लीवर की स्थिति ठीक है तो चयापचय (मेटाबालिज्म) की क्रिया सही चलती रहती है इसलिए लीवर को स्वस्थ्य रखना आवश्यक है| इस रोग में लीवर को महत्वपूर्ण सेल्स नष्ट हो जाते है| जिसके कारण लीवर लीवर के आकार आदि में परिवर्तन होने लगते है जो प्रत्यक्ष रूप से लीवर को प्रभावित करते है हेपेटाइटिस के लक्षण की चर्चा आदि की जाये तो इनमे त्वचा का रंग तथा आँखें पीली हो जाती है तथा पेशाब का रंग भी गहरा पीला होता है, पेट में दर्द व सूजन महसूस होते हैं, पाचन क्रिया गड़बड़ हो जाती है| मल का रंग खून की तरह लाल या गहरा पीला हो जाता है| सर्वप्रथम  हेपेटाइटिस के उपलब्ध टीके सभी को लगवाने चाहिए, दूषित जल और दूषित खाद्य पदार्थों को त्याग दे लीवर को सुरक्षित रखने के लिए पुनर्नवा (गदहपुर्ना)नामक हर्बल का प्रयोग कर्ण साथ ही यौगिक क्रिया में कपालभाति और अग्निसार क्रिया विशेष लाभकारी है| लीवर को स्वस्थ्य करने के लिए जाऊ, गेहूँ, हरी पत्तेदार सब्जी, लौकी, घृतकुमारी (एलोवेरा), मूली, नारियल पानी, गाय का दूध, छाछ, गन्ने का रस विशेष गुणकारी होता है| मिर्च मसाला, घी तेल से बने सामान इत्यादि हानिकारक है| अर्थात खान पान को व्यवस्थित करें अन्यथा जिस गति से खाद्य पदार्थों के प्रदूषण से यह रोग फ़ैल रहा है उससे यह प्रतीत हो रहा है की हर तीसरा व्यक्ति हेपेटाइटिस का रोगी हो जायेगा|

कपाल भाति
पाचनतंत्र
दूर्वा
दूर्वा
शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो दूब को नहीं जानता होगा| हाँ यह अलग बात है कि हर क्षेत्रों में तथा भाषाओँ में यह अलग अलग नामों से जाना जाता है| हिंदी में इसे दूब, दुबडा| संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली| मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा| गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो| अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन| बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामो से जाना जाता है| इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है| इसके औषधीय गुणों के अनुसार दूब त्रिदोष को हरने वाली एक ऐसी औषधि है जो वात कफ पित्त के समस्त विकारों को नष्ट करते हुए वात-कफ और पित्त को सम करती है| दूब सेवन के साथ यदि कपाल भाति की क्रिया का नियमित यौगिक अभ्यास किया जाये तो शरीर के भीतर के त्रिदोष को नियंत्रित कर देता है, यह दाह शामक,रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदर, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोगों, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है| यह कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक, उदर रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| श्वेत दूर्वा विशेषतः वमन, कफ, पित्त, दाह, आमातिसार, रक्त पित्त, एवं कास आदि विकारों में विशेष रूप से प्रयोजनीय है| सेवन की दृष्टि से दूब की जड़ का 2 चम्मच पेस्ट एक कप पानी में मिलाकर पीना चाहिए|



सहजन एक ऐसा वृक्ष है जो सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है,यह ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभिक काल  में फली के रूप में फल देना प्रारंभ कर देता है जिसका प्रयोग आमतौर पर सब्जी के रूप में किया जाता है, कुछ लोग इसकी फली को दाल में डालकर पकाकर भी सेवन करतें हैं | सहजन  विभिन्न  औषधीय गुणों के साथ आयरन  का अदभुत भण्डार भी है| विभिन्न क्षेत्रों व प्रान्तों में यह विभिन्न नामों से जाना जाता है,जैसे सहजन , सजिना, सुरजन, सोभाजन, सुलजना,मुआ, मुगा चेझाड़,मरुगाई,इंडियन हार्स रेडिश, विद्रधि नाशन आदि| इसके वृक्ष के विभिन्न अंगों को  अलग-अलग रोगों के लिए उपयोग में लाया जाता है,जैसे इसके फूल उदर रोगों व कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, शियाटिका,गठिया आदि|
जड़  दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग शियाटिका ,गठिया, यकृत,विव्दधि आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है| सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है| सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात, व कफ रोग शांत हो जाते है| इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया,,शियाटिका ,पक्षाघात,वायु  विकार में शीघ्र लाभ पहुंचाता है| शियाटिका   के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है, मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है | सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन  करने वाला बताया गया है| 

 सम्पूर्ण भारत वर्ष में पाए जाने वाला गूलर अपनी उपयोगिता के कारण हमारे देश में एक पवित्र वृक्ष के रूप में जाना जाता है. यह भिन्न भिन्न प्रदेशों में भाषा के अनुरूप भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है, महाराष्ट्र में तो ऐसा माना जाता है की गूलर के वृक्ष में भगवान् दत्तात्रेय का वास होता है. वैसे तो सम्पूर्ण भारत में इसे गुलर के नाम से जाना जाता है किन्तु संकृत में इसे उदुम्बर जन्नूफल, मराठी में उम्बर, गुजराती में उम्बरो,बंगला में यज्ञ डूम्बुरा, अंग्रेजी में क्लस्टर फिग आदि नामों से जाना जाता है. गुण धर्म की दृष्टि से यदि देखा जाए तो यह कफ पित्त शामक, दाह प्रशमन, अस्थि संघानक तथा सोत, रक्त पित्त, प्रदर,प्रमेह,अर्श, गर्भाशय विकार आदि नाशक है. चिकित्सा की दृष्टि से गूलर की छाल, पत्ते, जड़, कच्चाफल व पक्का फल सभी उपयोगी है| गूलर का कच्चा फल कसैला व उदार के दाह का नाशक होता है, पके फल के सेवन और कप्पल भाति की क्रिया करने से कब्ज मिटता है| पकाफल मीठा, शीतल, रुचिकारक, पित्तशामक, श्रमकष्टहर, द्राह- तृष्णाशामक, पौष्टिक व कब्ज नाशक होता है| कुछ दिनों तक लगातार इसकी जड़ का अनुपातिक काढ़ा पीने से व योग के अंतर्गत आने वाले कपाल भाति की प्रक्रिया से मधुमेह पूरी तरह से नियंत्रित हो जाता है|
खुनी बवासीर में इसके पत्तों का रस लाभकारी होता है| गूलर का दूध शरीर से बाहर निकालने वाले विभिन्न स्रावों को नियंत्रित करता है| हाथ पैर की चमड़ी फटने से होने होने वाली पीड़ा कम करने के लिए गूलर के दूध का लेप करना लाभकारी सिद्ध हुआ है| मुँह में छाले, मसूढ़ों से खून आना आदि विकारों में इसकी छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ली करने से विशेष लाभ होता है| ग्रीष्म ऋतु की गर्मी या अन्य जलन पैदा करने वाले विकारों एवं चेचक आदि में पके फल को पीसकर उसमे शक्कर मिलाकर उसका शर्बत बनाकर पीने से राहत मिलती है| इस प्रकार इसकी असंख्य उपयोगिताओं के कारण ही तो इसे पवित्र वृक्षों की श्रेणी में रखा गया है|

Yogacharya Vijay ke sath videshi shishya
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है जिसके लिए योग के विभिन्न आसन, प्राणायाम, ध्यान व षट्कर्म आदि अति महत्व पूर्ण घटक हैं| यह कहा जा सकता है की शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए आसन प्राणायाम व षट्कर्म का अभ्यास अपेक्षित है| योग के द्वारा न केवल शरीर सौष्ठव, स्फूर्ति आदि की प्राप्ति होती है बल्कि मन की एकाग्रता व स्वांस की क्रिया नियंत्रित होती है| शरीर में विद्यमान वाट काफ व पित्त का संतुलन बना रहता है, ध्यान लगता है, रोगों के निवारण में सहायता मिलती है, शरीर की मांसपेसियों में प्रसार व संकुचन की प्रक्रिया तीव्र होती है, शरीर में रक्त संचार भी व्यवस्थित होता है|
पुष्प चिकित्सा भी योग की ही भाँति स्वास्थ व चिकित्सा की दृष्टि से अचूक चिकित्सा पद्धति है, फूलों को शरीर पर धारण करने से शरीर की शोभा, काँटी, सौंदर्य, व श्री की वृद्धि तो होती है साथ ही फूलों की सुगन्धि रोग नाशक भी है, फूलों के सभी अवयव उपयोगी होते हैं, इनके यथाविधि उपयोग से अनेक रोगों का शमन किया जा सकता है| यहाँ कुछ पुष्पों के औषधि गुण दिए जा रहे हैं जो निम्नवत हैं-

गुलाब
- पेट और आंतो की गर्मी शांत करके ह्रदय को प्रसन्न करता है तथा मस्तिष्क को ठंडा करता है|
कमल- कमल की पंखुड़ियों को पीस कर उबटन में मिलाकर चहरे पर मलने से चहरे की सुन्दरता बढ़ती है| इनके फूलों से तैयार गुलकंद का उयोग कब्ज निवारण हेतु किया जाता है|
सूरजमुखी- इसका तेल ह्रदय रोगों में कोलेस्ट्रोल को कम करता है, इसमें विटामिन ए तथा डी होता है|
गेंदा- इसके गंध से मक्षर दूर भागते हैं, लीवर के रोगों, लीवर में सूजन, पथरी एवं चर्म रोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है|
चमेली- इसके पत्ते चबाने से मुह के छाले तुरंत दूर हो जाते हैं, पायरिया, दन्त शूल, फोड़े फुंसियों, चर्म रोगों व नेत्र रोगों में चमेली का तेल अत्यंत गुणकारी है|
केशर- यह शक्तिवर्धक, वमन को भी रोकने वाला तथा वात, कफ तथा पित्त नाशक है, दूध या पान के साथ इसके सेवन से यह ओज, बल, शक्ति व स्फूर्ति प्रदान करता है|
लौंग
- दाढ़ या दन्त शूल में मुह में दाल कर चूसने से लाभ होता है, अमाशय और अन्तो में रहने वाले उन सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करती है जिनके कारण पेट फूलता है|
गुड़हल- इसके फूलों को पीसकर बालों में लेप करने से बालों का गंजापन मिटता है, यह शीतवर्धक,बाजीकारक तथा रक्तशोधक है,
कचनार- इसकी कली बार बार मलत्याग की प्रवृत्ति को रोकती है| कचनार के फूल की पुलटिस बनाकर बनाकर घाव या फोड़े पर लगाने से लाभ मिलाता है|
नीम
-  यह संक्रामक रोगों से रक्षा करता है| नीम के फूलों को पीस कर पानी में घोलकर छानले और शहद मिलाकर पीने से वजन कम होता है|
हरश्रृंगार- इसका लेप चहरे की काँटी को बढाता है| यह गठिया रोग का नाशक है|
केवड़ा- केवड़ा फूल का इत्र सिर दर्द व गठिया में उपयोगी है, इसके फूल का तेल उत्तेजक व श्वांस विकार में लाभकारी होता है|
          इसी प्रकार अनेक अन्य फूल भी हैं जिनमे औषधीय गुण विद्यमान है|
(नोट:- निकट भविष्य में अन्य भी बहुत से फूलों के औषधीय गुणों के बारे में लेख प्रकाशित किये जायेंगे|)
चिचड़ी
चिचड़ी एक ऐसा चमत्कारी पौधा है जो हर जगह आसानी से पाया जाता है| चिचड़ी को आयुर्वेद में अपामार्ग के नाम से जाना जाता है| पहचान की दृष्टि से देखा जाए तो इसके पत्ते कुछ गोल व खुरदुरे होते है, इसके तने व टहनियाँ गाँठ युक्त
होते है साथ ही इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसके फूल छोटे छोटे कांटेदार होते है जिसके निकट जाने से यह कपड़ो पर चिपक जाता है| यह जंगली वनस्पति कई रोगों जैसे बवासीर, फोड़े फुंसी, पायरिया दमा,मधुमेह, विषैले जंतु दंश, पेट दर्द इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| भिन्न भिन्न रोगों में इसे भिन्न भिन्न प्रकार से लिया जाता है जैसे- किसी भी प्रकार के फोड़े फुंसी पर चिचड़ी की पत्ती पीसकर उसमें सरसों का तेल मिलाकर गर्म करके लगाने से फोड़े फुंसी या तो बैठ जाते है या पक कर फूट जाते हैं| चिचड़ी (अपामार्ग) की जड़ की दातुन दांतों के हर प्रकार के रोगों में चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| बवासीर रोग में चिचड़ी के सात आठ पत्ते, उतने ही काली मिर्च के दाने को पीसकर दिन में एकबार एक कप पानी में डालकर पीने से बवासीर का खून  निकलना  बंद हो जाता है| सुगर रोग में इसके पत्ते का रस नियमित सेवन करना श्रेयष्कर होता है| विषैले जंतुओं के काटने पर चिचड़ी के पत्ते व जड़ का रस पिलाने व काटे हुए स्थान पर लगाने से विष का प्रभाव समाप्त होने लगता है| इसी प्रकार चिचड़ी के विभिन्न प्रकार से प्रयोग से पेट का दर्द, दमा, अफारा, खांसी इत्यादि में भी अपना लाभकारी प्रभाव दिखाते हैं| वनौषधियों के साथ-साथ अगर आसन प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं का भी प्रयोग किया जाये तो लाभकारी प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है|
शीतली
शीतकारी प्राणायाम
वायु मंडल में प्रदूषणकारी गैसों की वृद्धि, व्यापक स्तर पर हो रहे औद्योगीकरण के कारण जल प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है, इस जल प्रदूषण को रोकने के उपाय अवश्य करने चाहिए, क्योंकि जल में अद्भुत औषधीय शक्ति होती है जो कई रोगों से बचाती है और उपचार भी करती है. चिकित्सा की तमाम पद्धतियों में जल चिकित्सा भी जग जाहिर है बहुत से रोगों में जल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है. किसी रोग के उपचार हेतु ठन्डे पानी तो कई रोगों का उपचार गरम जल से किया जाता है. उदहारण के तौर पर जोड़ों का दर्द, घुटने का दर्द, स्पंडलाइटीस, कमर का दर्द, हड्डियों में जकड़न आदि में गरम पानी(सहने योग्य) से सेंकाई की जाती है. इसी तरह मोंच आ जाने या चोट लग जाने वाले स्थान पर ठन्डे पानी की पट्टी लगाने से न तो सुजन आयेगी और न ही दर्द बढ़ेगा. अधिक मात्रा में रक्त स्राव होने पर ठंडा पानी घाव पर डालने से रक्त बंद बहना बंद हो जाता है. तीव्र बुखार आने पर ठन्डे पानी की पट्टी माथे पर रखने व पुरे बदन को पानी से पोंछने पर भी लाभ होता है. शास्त्रों में उल्लिखित है की 'अजीर्नो भेषजं वारि बल प्रदम' यानी कि अजीर्ण अर्थात अपच होने पानी दवा का काम करता है और भोजन के बाद पानी से शरीर को बल कि प्राप्ति होती है. जिसे नींद न आती हो ऐसे व्यक्ति को शयन से पूर्व सहने योग्य गर्म पानी से भरी बाल्टी में पैरों को घुटने तक दाल कर पंद्रह से बीस मिनट तक रखना चाहिए इसके बाद पैरों के सूखे तौलिये से पोंछकर सोने से नींद अच्छी आती है. अकस्मात् आग से जल जाने या झुलस जाने पर जले हुए अंग को कुछ देर पानी में डालकर रखने से फफोले नहीं पड़ते और जलन दूर हो जाती है. ग्रीष्म ऋतू का आगमन हो रहा है, उलटी दस्त, बदहजमी, डायरिया का प्रकोप बढ़ जाता  हैशरीर में पानी कि कमी भी हो जाती है, शरीर में अत्यधिक पानी कि कमी हो जाने के कारण मृत्यु कि संभावना  रहती है ऐसी स्थिति में मरीज को बचाने में दो विकल्प विशेष लाभकारी होते है, या तो सेलाइन चढ़ाकर या चीनी नमक का घोल (उचित अनुपात में ) से युक्त पानी पिलाना. ये तो रहा जल का प्रत्यक्ष प्रयोग किन्तु यहाँ यह भी बताना समीचीन होगा कि योग कि दृष्टि से देखा जाये तो आवश्यकतानुसार व मौसम के अनुसार शीतली व शीतकारी प्राणायाम भी शरीर के होने वाले पानी कि कमी को दूर करता है.
हो सकता है आपने लिसोड़ा की सब्जी या अचार खाया होगा लेकिन यह भी जान लें की यह वनस्पति कफ जनित रोगों के लिए महा औषधि है .लिसोड़ा का वृक्ष सारे   भारत में पाया  जाता   है. यह दो प्रकार का होता है, छोटा और बड़ा लिसोडा. गुण धर्मं दोनों के एक सामान है, भाषा भेद  की दृष्टि से यह भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है हिंदी और मारवाड़ी में लिसोड़ा, मराठी और गुजराती में इसे बरगुन्द, बंगाली में बहंवार, तेलगु में चित्रनक्केरू, तमिल में नारिविली, पंजाबी में लसूडा, फारसी में सपिस्तां व अंग्रेजी में इसे सेबेस्टन नाम से जाना जाता है. वसंत ऋतू में इसमे फूल आते है और ग्रीष्म ऋतू के अंत में फल पक जाते है. यह मधुर-कसैला, शीतल, विषनाशक, कृमि नाशक, पाचक, मूत्रल, जठराग्नि प्रदीपक, अतिसार व सब प्रकार दर्द दूर करने वाला, कफ निकालने वाला होता है. इसकी छाल और फल का काढ़ा जमे व सूखे कफ को ढीला करके निकाल देता है. सुखी खांसी ठीक करने के लिए यह बहुत ही उपयोगी होता है. जुकाम खांसी ठीक करने के लिए इसकी छाल का काढ़ा उपयोगी होता है. इसके फल का काढ़ा बना कर पीने से छाती में जमा हुआ सुखा कफ पिघलकर खांसी के साथ बाहर निकल जाता है इसलिए इसे श्लेष्मान्तक (संस्कृत में) भी कहा जाता है. इसके कोमल पत्ते पीस कर खाने से पतले दस्त (अतिसार) लगना बंद होकर पाचन तंत्र में सुधार हो आता है. उपरोक्त गुणों के साथ साथ इसकी छाल को पानी में घिस कर पीस कर लेप करने से खुजली नष्ट होती है. इसके फल के लुआव में एक चुटकी मिश्री मिलाकर एक कप पानी में घोल कर पीने से पेशाब की जलन आदि मूत्र रोग ठीक होते है. कफ जनित रोगों के लिए जिस प्रकार "लिसोड़ा" गुणकारी है उसी प्रकार योग चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत सूर्यभेदन प्राणायाम सभी प्रकार के कफ रोगों का समूल नाश करता है. यह प्राणायाम अत्यंत गुणकारी है यह कफ विकारों को तो नष्ट करता ही है साथ ही साथ वात के प्रकोप को नष्ट करते हुए रक्त विकार को दूर करते हुए त्वचा रोग को ठीक करता है .इस प्राणायाम  का अभ्यास शीतल वातावरण में करना चाहिए .वर्षा काल में सूर्योदय से पहले या सायंकाल कर सकते हैं . पित्त प्रधान और उष्ण प्रकृति के व्यक्तियों को ग्रीष्म ऋतु और उष्ण स्थान पर सूर्य भेदन प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए.
कष्टदायी माइग्रेन
भ्रामरी प्राणायाम

आंवला
हरड
बहेड़ा
चिरैता
हल्दी
नीम
गिलोय
कपाल भाति


जल नेति की विधि
जल नेति का लोटा

माइग्रेन अर्थात आधे सिर का दर्द. यह बहुत ही कष्टदायक रोग है, अधिकांशतः देखा गया है की इस रोग का कष्ट सूर्योदय से दोपहर तक रहता है और दोपहर के बाद घटना प्रारंभ हो जाता है वैसे तो यह रोग त्रिदोषज (वाट काफ और पित्त) होता है, लेकिन अधिकांश मामले में यह देखा गया है की वायु के कुपित होने पर वायु जब ऊपर की ओर बढ़ती है तब माइग्रेन का दौरा होता है तब गर्दन के नीचे टेम्पोरल धमनी फ़ैलाने और सिकुड़ने लगाती है. इसका असर गर्दनके आस पास की नसों पर पड़ता है जिसके परिणाम स्वरुप एक विशेष प्रकार का रासायनिक स्राव होता है जिससे सिर में दर्द बढ़ने लगता है. इस रोग का सबसे प्रमुख कारण समय से भोजन न करना, क्रोध, अनिद्रा, चिंता, जल्दीबाजी, मसाले इत्यादि का अधिक सेवन करना आदि है. नैदानिक दृष्टि से इसका नुस्खा घर पर भी तैयार किया जा सकता है- हरड, बहेड़ा, आंवला, चिरैता, हल्दी, नीम की छाल व गिलोय इन सब को सम मात्रा में लेकर कूट लें और करीब १५ ग्राम पाउडर को २०० ग्राम पानी में खौलाकर काढ़ा बांयें और ५० ग्राम शेष रहने तक खौलाएं तत्पश्चात छान लें और नित्य प्रातः खाली पेट और रात्रि में सोने से पूर्व कुछ दिन तक लें निश्चित ही लाभकर होगा. योग की दृष्टि से मैगरें के लिए जल नेति की क्रिया, कपाल भाति, अनुलोम विलोम व भ्रामरी प्राणायाम अत्यंत लाभकारी है.
Newer Posts Older Posts Home

ABOUT ME

I could look back at my life and get a good story out of it. It's a picture of somebody trying to figure things out.

Social

POPULAR POSTS

  • बालों का गिरना एक गंभीर समस्या, किन्तु साध्य - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव
  • गूलर में विद्यमान है अनेकों औषधीय गुण - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव
  • पाचन तंत्र को पुष्ट करता है "पुदीना" व वज्रासन - योगाचार्य विजय
  • हड्डियों के दर्द में रामबाण है "सुदर्शन का रस" - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव
  • सर्वसुलभ अपामार्ग (चिचड़ी) में है चमत्कारी औषधीय गुण - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव
  • रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु गेहूँ का ज्वारा

Categories

  • yoga
  • ayurved.
  • herbal

Advertisement

Contact Form

Name

Email *

Message *

All Articles are Under Strict Copyright | Yog aur Herbal | 2018. Powered by Blogger.

एक नजर इधर भी

योग व आयुर्वेद से जुडी किसी भी जिज्ञासा के लिए मुझसे संपर्क करें मेरे व्हाट्सऐप नंबर पर : +91- 7499114309

ऑन लाईन से सम्बंधित मैसेज vaidikyog@gmail.com पर भेंजे

योग व हर्बल से सम्बंधित किसी भी प्रकार की जिज्ञासा का हार्दिक स्वागत है.

Recent

Yog Aur Herbal

Pages

  • Home

Designed by OddThemes | Distributed by Gooyaabi Templates