सर्वसुलभ अपामार्ग (चिचड़ी) में है चमत्कारी औषधीय गुण - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव

चिचड़ी
चिचड़ी एक ऐसा चमत्कारी पौधा है जो हर जगह आसानी से पाया जाता है| चिचड़ी को आयुर्वेद में अपामार्ग के नाम से जाना जाता है| पहचान की दृष्टि से देखा जाए तो इसके पत्ते कुछ गोल व खुरदुरे होते है, इसके तने व टहनियाँ गाँठ युक्त
होते है साथ ही इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसके फूल छोटे छोटे कांटेदार होते है जिसके निकट जाने से यह कपड़ो पर चिपक जाता है| यह जंगली वनस्पति कई रोगों जैसे बवासीर, फोड़े फुंसी, पायरिया दमा,मधुमेह, विषैले जंतु दंश, पेट दर्द इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| भिन्न भिन्न रोगों में इसे भिन्न भिन्न प्रकार से लिया जाता है जैसे- किसी भी प्रकार के फोड़े फुंसी पर चिचड़ी की पत्ती पीसकर उसमें सरसों का तेल मिलाकर गर्म करके लगाने से फोड़े फुंसी या तो बैठ जाते है या पक कर फूट जाते हैं| चिचड़ी (अपामार्ग) की जड़ की दातुन दांतों के हर प्रकार के रोगों में चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| बवासीर रोग में चिचड़ी के सात आठ पत्ते, उतने ही काली मिर्च के दाने को पीसकर दिन में एकबार एक कप पानी में डालकर पीने से बवासीर का खून  निकलना  बंद हो जाता है| सुगर रोग में इसके पत्ते का रस नियमित सेवन करना श्रेयष्कर होता है| विषैले जंतुओं के काटने पर चिचड़ी के पत्ते व जड़ का रस पिलाने व काटे हुए स्थान पर लगाने से विष का प्रभाव समाप्त होने लगता है| इसी प्रकार चिचड़ी के विभिन्न प्रकार से प्रयोग से पेट का दर्द, दमा, अफारा, खांसी इत्यादि में भी अपना लाभकारी प्रभाव दिखाते हैं| वनौषधियों के साथ-साथ अगर आसन प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं का भी प्रयोग किया जाये तो लाभकारी प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है|

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