"योग व हर्बल नियंत्रित करता है मधुमेह को" - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव


 
गिलोय

पत्ते की आकृति पान की तरह तना रस्सी की तरह स्वाद में कटु कसैला संपूर्ण भारत में पाए जाने वाला यह औषधीय पौधा गुणों से परिपूर्ण वनस्पति जिसमे गिलोइन नामक ग्लूकोसाईड और तीन प्रकार के एल्कोलाइड होते है. यह वात पित्त और कफ का शमन करता है. वैसे तो उत्तर प्रदेश में यह गिलोय और गुरूच के नाम से विख्यात है किन्तु विभिन्न प्रान्तों में यह अमृतवल्ली, गिलो, गुलवेल, मधुपर्णी, गुडूची, गलो, आदि नामो से जाना जाता है. गिलोय रक्त वर्धक होता है. यह जिस वृक्ष पर चढ़ती है उस वृक्ष के गुण भी अपने अन्दर समाहित कर लेती है इस लिए मधुमेह (सुगर)के लिए नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय श्रेयष्कर कही जाती है. मधुमेह रोगी यदि नियमित गिलोय का सेवन व कुछ यौगिक क्रिया जैसे कपाल भाति, अग्निसार क्रिया तथा आसनों में मंडूक आसन, मकर आसन, पश्चिमोत्तानासन, शशकासन इत्यादि करे तो निश्चित इस रोग पर नियंत्रण कर सकता है. गिलोय का भिन्न-भिन्न प्रकार से सेवन भिन्न-भिन्न रोगों जैसे बुखार, पाण्डुरोग, रक्तचाप, प्रमेह, मधुमेह, रक्ताल्पता, आमवात, मुत्रविकार, मोटापा, प्लीहा वृद्धि

, सिर दर्द, मुँह के छाले, खाज खुजली, उदर शूल आदि में तत्काल प्रभावकारी है.


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